अमावस्या प्रारम्भ: 20 अक्तूबर, 15:44
अमावस्या समाप्त: 21 अक्तूबर, 17:54
१. अमावस्या और दीपावली का सामान्य नियम
लक्ष्मी पूजन अमावस्या की रात्रि में ही किया जाता है।
उपयुक्त समय है – प्रदोष काल (सूर्यास्त के लगभग ढाई घंटे बाद) अथवा माहानिशीथ काल (मध्य रात्रि)।
२० अक्तूबर की रात्रि को अमावस्या विद्यमान है।
२१ अक्तूबर की रात्रि में अमावस्या 17:54 तक ही है, उसके बाद शुक्ल प्रतिपदा प्रारम्भ हो जाती है।
➡ अतः लक्ष्मी पूजन २० अक्तूबर की रात्रि में ही होगा।
२. उदित तिथि का नियम
शास्त्र में कहा गया है – “उदये तु तिथि: प्रातः कर्तव्या”, अर्थात् सूर्योदय के समय जो तिथि विद्यमान हो, उसी तिथि से पर्व मान्य होता है।
२० अक्तूबर प्रातः – चतुर्दशी विद्यमान है (अमावस्या दोपहर बाद प्रारम्भ होगी)।
२१ अक्तूबर प्रातः – अमावस्या विद्यमान है।
➡ इस नियम से पर्व-दिवस २१ अक्तूबर मान्य होगा।
परंतु पूजन तो रात्रि में अमावस्या के समय होना चाहिए, और वह केवल २० अक्तूबर की रात्रि को ही संभव है।
इसी कारण अनेक पंचांगों में दीपावली २१ अक्तूबर लिखी रहती है, परन्तु पूजन २० की रात ही होता है।
३. “मध्याह्न के बाद देवपूजा वर्जित” का नियम
सामान्यतः शास्त्र कहते हैं कि देवपूजा प्रातःकाल (सूर्योदय से मध्याह्न तक) ही करनी चाहिए।
अपराह्न एवं संध्याकाल पितृ-संबंधी कर्मों के लिए माने गए हैं।
अपवाद: दीपावली की लक्ष्मी-पूजा विशेष रूप से रात्रि में ही विधान है, क्योंकि समुद्र-मंथन से लक्ष्मीजी का आविर्भाव अमावस्या-रात्रि में हुआ।
धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्धु में लिखा है – “लक्ष्मी पूजनं प्रदोषे निशीथे वा”।
अतः यहाँ सामान्य नियम का अपवाद है, और रात्रि में पूजा अनिवार्य है।
🔑 अंतिम निष्कर्ष
पर्व-दिवस (उदित तिथि से): २१ अक्तूबर
वास्तविक लक्ष्मी-पूजन: २० अक्तूबर की रात्रि (प्रदोष काल / माहानिशीथ / वृषभ लग्न)
कारण: २१ अक्तूबर की रात्रि में अमावस्या नहीं है।
✨ संक्षेप में: दीपावली पर्व २१ अक्तूबर को मानें, किन्तु लक्ष्मी-पूजन २० अक्तूबर की रात्रि में ही करें।

