जातकर्म संस्कार शिशु के जन्म के समय किया जाने वाला प्रथम संस्कार है। इसमें शिशु के कान में मधुर वाणी से संस्कृत मंत्र बोले जाते हैं, जिससे उसका जीवन शुभ एवं संस्कारित हो।
पिता/ऋत्विज नवजात शिशु को घृत + मधु (गाय का शुद्ध घी व शहद) का स्पर्श कराते हैं, तब वे कहते हैं –
मन्त्र
ॐ हन्त ते जातवेदो अयमहम् मधुं घृतं वाचः।
अर्थ
“हे नवजात! देखो, मैं तुम्हें यह मधु और घृत अर्पित करता हूँ, जिससे तेरी वाणी मधुर और पवित्र बने।”
आगे फिर आशीर्वचन जैसे —
मुख्य मंत्र
ॐ अश्मभि: अजीजनं वज्रं इन्द्रस्य कर्णौ। (शिशु के कान में धीरे से बोलना — यह शक्ति और बल प्रदान करता है।)
ॐ मेधावी मे भव। (अर्थ: हे बालक! तू मेधावी बन।)
ॐ आयुष्मान भव। (अर्थ: तू दीर्घायु हो।)
ॐ वीर्यवान भव। (अर्थ: तू पराक्रमी हो।)
ॐ तेजस्वी भव। (अर्थ: तू तेजस्वी बन।)
ॐ ब्रह्मवर्चस्वी भव। (अर्थ: तू ज्ञान और आध्यात्मिक तेज से युक्त हो।)
जातकर्म संस्कार मंत्र (कन्या शिशु हेतु)
१. जीवन और आयु के लिए
ॐ आयुष्मती भव। (हे बालिका! तू दीर्घायु हो।)
२. मेधा और बुद्धि के लिए
ॐ मेधावी भव। (तू बुद्धिमती एवं ज्ञानवती हो।)
३. तेजस्विता के लिए
ॐ तेजस्विनी भव। (तू तेजस्विनी बने।)
४. सौभाग्य एवं मंगल के लिए
ॐ सौभाग्यवती भव। (तू सौभाग्यशालिनी बने, सदा मंगलमयी रहे।)
५. समृद्धि और सुख के लिए
ॐ समृद्ध्यै भव। (तेरे जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे।)
६. आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आशीर्वचन
ॐ ब्रह्मवर्चस्विनी भव। (तू धार्मिक-आध्यात्मिक तेज से सम्पन्न हो।)
विधि संक्षेप
- शिशु के जन्म के बाद स्नान व शुद्धि करके पिता/पुरोहित घृत और मधु को स्वर्ण की कटोरी अथवा स्वर्णचूर्ण में मिलाकर शिशु की जिह्वा पर अंश मात्र स्पर्श कराते हैं।
- उपर्युक्त मंत्र क्रमशः कान में धीरे से बोले जाते हैं।
- अंत में पिता कहते हैं —
“ॐ नामधेयाय” – अब यह बालक/कन्या नामकरण के लिए तैयार है।

